आज मुलाकात हुई,
जाती हुई उम्र से,
मैंने कहा, ‘ज़रा ठहरो तो’,
वो हंसकर इठलाते हुए बोली,-
‘मैं उम्र हूं ठहरती नहीं,
पाना चाहते हो मुझको,
तो मेरे हर कदम के संग चलो।’
मैंने मुस्कराते हुए कहा,-
‘ कैसे चलूं मैं बनकर तेरी हम-कदम,
संग तेरे चलने पर छोड़ना होगा,
मुझको मेरा बचपन,
मेरी नादानी, मेरा लड़कपन,
तू ही बता दे-
समझदारी की दुनिया
कैसे अपना लूं ?
जहां हैं नफरतें, दूरियां, शिकायतें और अकेलापन।’
उम्र ने कहा,-
‘मैं तो दुनिया के चमन में,
बस एक मुसाफिर हूं,
गुजरते वक्त के साथ,
एक दिन यूं ही गुज़र जाउंगी,
करके कुछ आंखों को नम,
कुछ दिलों में यादें
बन बस जाउंगी।’
मैं हतप्रभ सोचने लगी-
उम्र ने एक ही पल में,
सदियों की सच्चाई बयां कर दी,
और मैं फंसी हूं अब तक,
भावनाओं के कालचक्र में।।
आपकी कविता का हर एक शब्द बोल रहा है उम्र का सही मतलब। जो समझले वो होशियार जो ना समझे उसका सब कुछ भगवान भरोसे । ☺️☺️
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Wow beautiful 😍
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Splendid . Very beautifully expressed, straight from the heart.
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Your encouragement will boost my ABHIVYAKTI well
पसंद करेंपसंद करें