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“नई उम्र”

उम्र के जज़्बे को सलाम है हर पल,
स्वीकार है इसकी हर सुंदरता,
स्वीकार है इसके सब गुण-अवगुण,
दुख नहीं है,जब मेरे अपनों के पास,
समय का अभाव है मेरे लिए,
दुख नहीं है, जब मेरा जीवन साथी,
व्यस्त है समाज और व्यापार में,
खुश हूं ये देखकर, जब मेरे बच्चे,
व्यस्त हैं अपनी मौज-मस्ती में,
मैंने स्वयं को खोजा है फिर एक बार,
फिर से सहेजे हैं अपने खोए शौक,
नवयौवना हो गयीं हूं अपनी सखियों संग,
जी रहीं हूं अपना बचपन अपने मित्रों में,
तितली सी उड़ रही हूं उन्मुक्त आसमान में,
फिर से उड़ रहीं हूं अपनी दबी इच्छाओं को,
पूरा करने की कोशिशों के पंखों के साथ,
अपनी बीमारियों को मैंने विस्मृति बनाया है,
फिर से निखार रहीं हूं स्वयं को भुलाकर उम्र,
मेरा अनुभव मेरा सबसे बड़ा हथियार है,
परवाह नहीं मुझे किसी के कुछ कहने या सुनने की,
मैं बह रही हूं स्वत: प्रसन्नता से,
उम्र के प्रवाह में
जी रहीं हूं अपना जीवन आज़ादी से,
जहां मैं स्वयं की उपयोगिता समझती हूं,
कि मैं स्वयं में परिपूर्ण हूं,
पारिवारिक बंधन में बंधी,
अपनी खुशियों के साथ पंछी सी विचरती,
फिर से एक नयी उम्र जीती मैं।।

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