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समर अभी बाकी है

आहत मन, ठहर जरा,
धीरज धर, ये दुनिया ऐसी ही है, सम्हलना तुझे है, सशक्त हो और आगे बढ़, सोच मत,
समर अभी जारी है।
तू पहचान अपनी शख्सियत को,
समेट अपने विश्वास को,
दुनिया मानव और दानव
दोनों से मिलकर बनी है,
ये बात और है,
यहां दानव भी, मानव के भेष में घूमते हैं,
मित्र के भेष पग पग में बहरूपिए हैं
मत बदल खुद को
तेरी अच्छाई और सच्चाई ही तेरी पहचान है,
तू खुद मान अपनी शख्सियत को पहचान
और धीरज धर,
सोने की तरह तप कर चमक,
बढ़ता जा, मत रुक
समर अभी बाकी है।।
हाँ सफर अभी बाकी है
हाँ ये दुनिया ऐसी ही है
हर कदम पर नया तजुर्बा है
सबके चेहरे पर एक चेहरा है
किसी के बदल जाने से तू न बदल जाना
अपनी शक्सियत को किसी का मोहताज न बनाना
तो क्या अगर लोग तुम्हें सीढी के जैसे इस्तेमाल करते हैं
क्या यह प्रमाण नहीं की तुम्हारा कद कितना ऊँचा है
तू बढ़, तू चल,
अपने सफर पर कोई साथ हो न हो
क्यूंकि समर अभी बाकी है।।

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