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“मैं हूं……..तो केवल मैं हूं”

मैं हूँ तो केवल मैं हूँ, और बस यही मैं हो भी सकती हूँ,
इससे ज्यादा नहीं और न कम, बस यही कह सकती हूँ,

मैं जीती हूँ, मैं हँसती हूँ, मैं प्यार करती हूँ और चिल्लाती हूँ,
और कभी यह भी सोचती हूँ, कि मैं खत्म क्यों नहीं हो जाती हूँ,

कभी मैं गंभीर, तो कभी मजाकिया बन जाती हूँ
कहीं रुकती हूँ तो कहीं बस चलती चली जाती हूँ,

किसी की ईमानदार पत्नी हूँ तो किसी की गहन मित्र हूँ,
कभी बिल्ली सी दुबकी हूँ तो कभी शेर सी दहाड़ी हूँ,

मैं मां हूँ, मेरे बच्चे मेरे लिए भगवान का उपहार हैं,
जिनकी मुस्कराहट मेरे लिए उस परमात्मा का उपकार हैं,

मैं रोमांटिक हूँ, मैं भावुक हूँ तो कभी बहुत दुखी भी हो जाती हूँ,
जिन्दगी को पास से देखने के लिए आपकी जिन्दगी के करीब हो आती हूँ,

मैं किसी के लिए दवाई, तो किसी के लिए जहर सा असर कर जाती हूँ,
रहती हूँ आपके आसपास ही, कभी भी और कहीं भी दूर नहीं जाती हूँ,

शर्मीली हूँ, गर्वीली हूँ , मीठी हूँ, कड़वी हूँ और कहीं अधूरी,
तो कहीं पूरी हूँ,
ढोलक हूँ, बांसुरी हूँ, किसी का घुँघरू,  तो कहीं किसी के लिए तानपूरा बन जाती हूँ,

कभी गलती कर देती हूँ,
कभी गलती को माफ़ नहीं कर पाती हूं,
क्योंकि दिल में लगी चोट के निशान, मैं साफ़ नहीं कर पाती हूं,

किसी ने मेरे काम,
तो किसी ने मेरे तर्कों को गलत समझ लिया,
क्योंकि मैंने हमेशा जो किया वो केवल अपने लिए ही नहीं किया,

हीरे की ही तरह मेरे कई चेहरे हैं,
मैं बस यही मानती हूँ,
क्योंकि मैं हूँ तो केवल मैं हूँ और मैं अपने आपको पहचानती हूँ…….

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