” हौंसला “
मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंची नही हूं मैं
कदमो को बांध न पाएंगी, मुसीबत की जंजीरें,
रास्तों से जरा कह दो, अभी भटकी नही हूं मैं
सब्र का बांध टूटेगा, तो फ़ना कर के रख दूंगी,
दुश्मन से जरा कह दो, अभी गरजी नही हूं मैं
दिल में छुपा के रखी है, लड़कपन की चाहतें,
मोहब्बत से जरा कह दो, अभी बदली नही हूं मैं
साथ चलती हूं लेकर , दुआओं का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो, अभी तनहा नहीं हूं मैं….
हौंसला अब भी बाकी है तन-मन में,
जीतना ही है मुझे, खिलाफत से हारी नहीं हूं मैं…..।।