शर्मिंदा हूं मैं आज,
स्वयं की निष्क्रियता पर
हतप्रभ हूं मैं आज,
समाज की ‘चुप्पी’ पर
विचलित हूं आज,
स्वयं के बेटी की मां होने पर
कल की ही तरह, घिरी हूं आज,
चिंता में समाज की वीभत्स स्वरूप पर
अजीब सा सन्नाटा है आज,
गहन चोट है सुन्न मस्तिष्क पर
विचारों को शब्दों का है अभाव,
उद्वेलित आत्मा कर रही है चीत्कार
हर पल गूंज रही है एक आवाज,
आखिर कब तक होगा ये अत्याचार
नाम बदलता है हर बार,
और मानवता करती है हाहाकार
कब तक आखिर कब तक ?
डरना होगा बेटी की मां होने पर ।।
😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔😔
manishayouarevictimbitiya*
