
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं
मैंने सोचा आज मै अपने अंतरात्मा को देखूं,
अपने बनावटी लिबास को आज उतार फेंकू,
अपनी आत्मा को दुनिया की आग में सेंकू,
पर यहां तो हमाम में सब नंगे दिख रहे हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं।
समझ में नहीं आता देश में क्यों होते हैं दंगे,
एक दूसरे के साथ क्यों होते हैं बेमतलब के पंगे,
लगता है हर नेता के हाथ जैसे हो खून से रंगे,
सफेद खादी पर अनगिनत दाग दिख रहे हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं।
आज की ज़िन्दगी ने अचानक मोड़ ले लिया,
आज इस कोरोना सबको तोड दिया,
ज़िंदा रहेगा वो जो बस सावधानी है जिया,
आज हम भी एक नई कहानी लिख रहे हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं
ना जानें भगवान कब इस धरती पर आएगा,
ना जाने कौन इन शैतानों को दंड दिलाएगा,
इंसान बनेगे तब,जब इंसान का इंसानियत से रिश्ता हो जाएगा,
लेकिन यहां तो जलती लाशों पर चीथड़े सिक रहें हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं।
आज का समाज देखो कितना बट गया,
नैतिकता से हमारा नाता है कट गया,
सामाजिक मूल्यों से हमारा संबद्ध हट गया,
हमारे ईमान अब बुराइयों पर टिक रहे हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं
अंधों के शहर में आइने बिक रहे हैं।।