कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा….दोस्तों,
मैं उतना लिख बोल नहीं पाती, जितना महसूस करती हूँ!
कभी कभी सच को सच और झूठ को झूठ कह देती हूं,
फिर दूसरे ही पल सम्हल जाती हूं और मुस्कराती हूं,
यहां कोई सच सुनना नहीं चाहता,
सबकी अपनी झूठ सच की दुनिया है, स्वयं को समझाती हूं!
एक चेहरे पर अनेक चेहरे चढ़ाकर जीते हैं,
सबके अपने दर्द और दर्द-ए-दिल हैं,
आत्ममंथन करती हूं, एक नये दृढ़ विश्वास से भर जाती हूं!
हर बार कुछ नया सीख जाती हूं……दोस्तों,
उतना लिख बोल नहीं पाती, जितना महसूस करती हूं!

कुछ कहना था…..दोस्तों