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चार दिन की ज़िंदगी

क्या क्या कर जाना हैबहुत लम्बा और कठिन है डगरमगर फिर भी बहुत दूर तक जाना है क्योँ रोते हो अपने दुखों परदेखो दुनिया में कहाँ कोई बे-गम है,घर से बाहर तो निकलोयहाँ सब बेदम है । नमक की लिए पोटलीजले की तलाश मेंसब घूम रहे है यहाँ,मरहम बन कर तुमकिसी का घाव को भरपढ़ना जारी रखें “चार दिन की ज़िंदगी”

आत्ममंथन

कभी शब्दों में तलाश न करना वजूद मेरा….दोस्तों,मैं उतना लिख बोल नहीं पाती, जितना महसूस करती हूँ!कभी कभी सच को सच और झूठ को झूठ कह देती हूं,फिर दूसरे ही पल सम्हल जाती हूं और मुस्कराती हूं,यहां कोई सच सुनना नहीं चाहता,सबकी अपनी झूठ सच की दुनिया है, स्वयं को समझाती हूं!एक चेहरे पर अनेकपढ़ना जारी रखें “आत्ममंथन”

जीवन

वक्त का तकाज़ा था,काश रुक जाता ये एक पल,जब हमारी नज़र तुम पर ठहर गयी थी।धड़कन बेतहाशा दौड़ रही थी,आकांक्षाओं की चरम सीमा थी,मन का चंवर डोल रहा था,तन पर छायी थी महक मादकता की,बस, सांसें ही नहीं रुकीं ।फिर,चला दौर मोहब्बत का,शोर था चिड़ियों के चहचहाने का,मन मयूर के गाने का,इंतज़ार की रातों केपढ़ना जारी रखें “जीवन”

“आत्मविश्वास” ये सफर यूं ही चले हंसते हंसते,थाम कर कुछ हाथ, लेकर कुछ साथ,ना संशय, ना अविश्वास,लेकर हर पल नयी आस,स्वयं को लेकर साथ,स्वयं पर कर के विश्वास,इस सफर को पूरा करना है,आत्मविश्वास की लौ जला करउजाले की ओर जाना है,अंतर्मन की सुनकर, सबको साथ लेकर,एक नयी मंजिल को पाना है,कदम थमेंगे जरूर, रुकेंगे नहीं,होपढ़ना जारी रखें

जिंदगी

खिले तो गुलाब सी महकती है जिंदगी,बुझे तो चिराग की ठंडी राख सी है जिंदगी,हर कोई आधीन है अपनी इच्छाओं के,जीवन‌ के रंगमंच पर नाच रहे हैं,इच्छाओं को पूरा करने की अंधाधुंध दौड़ में,चमकदार लिबासों में छिपा कर असलियतझूठ के पीछे भाग कर बिता रहे हैं जिंदगी,सितारों के आगे जहां और भी है,बचपन से सुनतेपढ़ना जारी रखें “जिंदगी”