“दिल के रिश्ते”

दिल के रिश्ते,
कुछ हासिल करने को,
नहीं बनते,

दिल के रिश्ते तो,
साँसों की तरह होते हैं,

शरीर के पास,
विकल्प नहीं होता साँसों का,
रजामंदी नहीं होती कि,
साँस लें या नहीं।

जो हालत शरीर की,
सांसों के बिना होती है,
वही हाल दिल का,
अपने प्रिय दोस्तों बिना होता है,

तड़पता है कुछ समय तक,
फिर निर्जीव हो जाता है,
दिल की बिडंबना यह है कि,
यह दिखता नहीं।

इसलिये इसका,
जनाज़ा भी उठने की,
परवाह नहीं होती,
किसी को ।

तो दोस्तों बनाए रखना
इन दिल के रिश्तों को,
जब तक हम हैं।
मोहलत देना,
वक्त को भी
और दोस्तों को भी ।।

2 विचार ““दिल के रिश्ते”&rdquo पर;

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